एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
य़ाद रह्ता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन
याद रहता है किसे।
सर्द पड जाती है चाहत और जाती है लगन
अब मुहब्बत भी है क्या इक तिजारत के सिवा
हम भी नादां थे जो ओढा बीती यादों का कफ़न
वर्ना जीने के लिए सब कुछ भुला लेते है लोग
एक चेहरे पर...................................................
जाने वो क्या लोग थे जिन को वफ़ा का पाठ
जाने वो क्या लोग थे
दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी ये अहसास था
अब हैं पत्थर के सनम जिनको एहसास ना गम
वो ज़माना अब कहां जो अहले दिल को राज था
अब तो मतलब के लिए नामे वफ़ा लेते हैं लोग
एक चेहरे पर......................